नज़्म

मत क़त्ल करो आवाज़ों को

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Ahmad Faraz

तुम अपने अक़ीदों के नेज़े
हर दिल में उतारे जाते हो
हम लोग मोहब्बत वाले हैं
तुम ख़ंजर क्यूँ लहराते हो

इस शहर में नग़्मे बहने दो
बस्ती में हमें भी रहने दो

हम पालनहार हैं फूलों के
हम ख़ुशबू के रखवाले हैं
तुम किस का लहू पीने आए
हम प्यार सिखाने वाले हैं

इस शहर में फिर क्या देखोगे
जब हर्फ़ यहाँ मर जाएगा
जब तेग़ पे लय कट जाएगी
जब शेर सफ़र कर जाएगा

जब क़त्ल हुआ सुर साज़ों का
जब काल पड़ा आवाज़ों का

जब शहर खण्डहर बन जाएगा
फिर किस पर संग उठाओगे
अपने चेहरे आईनों में
जब देखोगे डर जाओगे!

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Ahmad Faraz