Categories: ग़ज़ल

इन्‍क़िलाब आया , नई दुन्या , नया हंगामा है

Published by
Akbar Allahabadi

इन्‍क़िलाब आया, नई दुन्या, नया हंगामा है
शाहनामा हो चुका, अब दौरे गांधीनामा है।

दीद के क़ाबिल अब उस उल्‍लू का फ़ख्रो नाज़ है
जिस से मग़रिब ने कहा तू ऑनरेरी बाज़ है।

है क्षत्री भी चुप न पट्टा न बांक है
पूरी भी ख़ुश्‍क लब है कि घी छ: छटांक है।

गो हर तरफ हैं खेत फलों से भरे हुये
थाली में ख़ुरपुज़ की फ़क़त एक फॉंक है।

कपड़ा गिरां है सित् र है औरत का आश्‍कार
कुछ बस नहीं ज़बॉं पे फ़क़त ढांक ढांक है।

भगवान का करम हो सोदेशी के बैल पर
लीडर की खींच खांच है, गाँधी की हांक है।

अकबर पे बार है यह तमाशाए दिल शिकन
उसकी तो आख़िरत की तरफ ताक-झांक है।

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Akbar Allahabadi