Categories: ग़ज़ल

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी

Published by
Ameer Minai

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
क्यूँ तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी

बअ’द मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी

मैं ने आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी खेंचा तो कहा
पिस गई, पिस गई बेदर्द नज़ाकत मेरी

आईना सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल जो देखा तो कहा
देख ज़ालिम ये थी शाम को सूरत मेरी

यार पहलू में है, तन्हाई है, कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी

हुस्न और इश्क़ हम-आग़ोश नज़र आ जाते
तेरी तस्वीर में खिंच जाती जो हैरत मेरी

किस ढिटाई से वो दिल छीन के कहते हैं ‘अमीर’
वो मिरा घर है रहे जिस में मोहब्बत मेरी!

Published by
Ameer Minai