loader image

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या,
घुँघटा में आग लगा देती,
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी,
पिया प्यार को अपने मना लेती।

इन चुरियों की लाज पिया रखना,
ये तो पहन लई अब उतरत ना,
मोरा भाग सुहाग तुमई से है,
मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी।

मोरे हार सिंगार की रात गई,
पियू संग उमंग की बात गई,
पियू संग उमंग मेरी आस नई।

742

Add Comment

By: Amir Khusro

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!