कविता

होली डफ की – भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविता

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Bhartendu Harishchandra

तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी।
इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनौ जोरा-जोरी।
छोड़ि दे ईकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री।
‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री।

देखो बहियाँ मुरक मेरी ऐसी करी बरजोरी।
औचक आय धरी पाछे तें लोकलाज सब छोरी।
छीन झपट चटपट मोरी गागर मलि दीनी मुख रोरी।
नहिं मानत कछु बात हमारी कंचुकि को बँद खोरी।
एई रस सदा रसि को रहिओ ‘हरीचंद’ यह जोरी।

होली डफ की

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Bhartendu Harishchandra