Categories: कविता

माँ – छगनलाल सोनी की कविता

Published by
Chhagan Lal Soni

माँ
तुम्हें पढ़कर
तुम्हारी उँगली की धर कलम
गढ़ना चाहता हूँ
तुम सी ही कोई कृति

तुम्हारे हृदय के विराट विस्तार में
पसरकर सोचता हूँ मैं
और खो जाता हूँ कल्पना लोक में
फिर भी सम्भव नहीं तुम्हें रचना
शब्दों का आकाश
छोटा पड़ जाता है हर बार
तुम्हारी माप से

माँ
तुम धरती हो।

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Chhagan Lal Soni