कविता

विदा देती एक दुबली बाँह

Published by
Dharamveer Bharti

विदा देती एक दुबली बाँह सी यह मेड़
अंधेरे में छूटते चुपचाप बूढ़े पेड़

ख़त्म होने को ना आएगी कभी क्या
एक उजड़ी माँग सी यह धूल धूसर राह?
एक दिन क्या मुझी को पी जाएगी
यह सफर की प्यास, अबुझ, अथाह?

क्या यही सब साथ मेरे जायेंगे
ऊँघते कस्बे, पुराने पुल?
पाँव में लिपटी हुई यह धनुष-सी दुहरी नदी
बींध देगी क्या मुझे बिलकुल?

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Dharamveer Bharti