loader image

महाबलीपुरम – दूधनाथ सिंह की कविता

(पहली गुफ़ा में गोबर्धन-धारण के भित्ति-चित्र को देखकर)

कौन है वह विशालकाय आजानुबाहु ! काले आसमान में
अपनी हथेलियों पर एक लाल पहाड़ उठाए हुए
कौन है वह–इस हरी-भरी धरती पर अपना पैर टिकाए हुए
अब वह कहाँ है ?

चारों ओर ठिगनी जनसंख्या है–सहमी हुई, कातर
आँखों के आगे समुद्र की चिंघाड़ है–
दहाड़ता हुआ अंधकार ।

उंगली पकड़े हुए, माँ की टांगों से चिपटे हुए बच्चे हैं
उत्सुक निगाहों से प्रलय के खिलौने का इन्तज़ार करते हुए
बीते हुए समय के जुएँ हेरते बन्दरनुमा काठ चेहरे हैं
ठिठकी हुई बेमतलब कुदाल है हाथों में
थर्रायी हुई फ़सलें हैं
डर से करियाई हुई नदी है ।

(सिर्फ़ पशु हैं–निश्चिन्त, निर्विकार
हरी घास चरने को उत्सुक
या सुखी और पालतू हिरन हैं–
चौकड़ी भरने को तैयार ।)

कहाँ है टूट कर बरसता हुआ घनघोर संघर्ष ?

कब तक सहेंगे हम चुपचाप
युद्ध का निरर्थक इन्तज़ार ?

महाबलीपुरम

699

Add Comment

By: Doodhnath Singh

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!