कविता

मुझे लोग तुमसे विलग कर देंगे

Published by
Doodhnath Singh

मुझे
लोग तुमसे विलग कर देंगे
जैसे बच्चे को माँ से छीना जाता है
उसके आँसू उसकी चीख़ मुझे सुन पड़ रही है
अचानक मेरा हाथ तुम्हारी हरी चुनरी से बिछड़ जाएगा
थोड़ी हरियाली मेरे आँसुओं में
थोड़ी अन्तस में तुम्हारे चुपचाप
थोड़ा देखना तुम्हारा दूर दिशाओं में
जिधर मैं घुल गया मिट गया अदृश्य के सूनेपन में
मेरे रक्त-रहित खँडहर का मुड़ना तुम्हारी ओर
जिधर तुम बेबस चुपचाप इतिहास-रहित लौट गईं

अपनी महत्ता की दमक में रहो
जो दिन शेष हैं
सुखी और अपूर्ण
दर्शन देते हुए
नैतिकता के स्वांग
में मुस्कुराओ
घिरे हुए
चिरे हुए
बस याद करो कभी-कभी
उसको जो
था ।

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Doodhnath Singh