loader image

ओ, नारी ! – दूधनाथ सिंह की कविता

मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूँ
जो तुम्हें दिखेगा नहीं
मैं तुम्हारी कोमल कलाई पर उगी हुई धूप हूँ
अतिरिक्त उजाला –- ज़रूरत नहीं जिसकी
मैं तुम्हारी ठोढ़ी के बिल्कुल पास
चुपचाप सोया हुआ भरम हूँ साँवला
मर्म हूँ दर्पण में अमूर्त हुआ
उपरला होंठ हूँ खुलता हँसी की पंखुरियों में
एक बरबस झाँकते मोती के दर्शन कराता
कानों में बजता हुआ चुम्बन हूँ
उँगलियों की आँच हूँ
लपट हूँ तुम्हारी
वज्रासन तुम्हारा हूँ पृथ्वी पर
तपता झनझनाता क्षतिग्रस्त
मातृत्व हूँ तुम्हारा
हिचकोले लेती हँसी हूँ तुम्हारी
पर्दा हूँ बँधा हुआ
हुक् हूँ पीठ पर
दुख हूँ सधा हुआ
अमृत-घट रहट हूँ
बाहर उलीच रहा सारा
सुख हूँ तुम्हारा
गौरव हूँ रौरव हूँ
करुण-कठिन दिनों का
गर्भ हूँ गिरा हुआ
देवता-दैत्य हूँ नाशवान
मर्त्य असंसारी धुन हूँ
अनसुनी । नींद हूँ
तुम्हारी
ओ, नारी !

786

Add Comment

By: Doodhnath Singh

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!