ग़ज़ल

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला

Published by
Dushyant Kumar

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला
मैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोला

इन राहों के पत्थर भी मानूस थे पाँवों से
पर मैंने पुकारा तो कोई भी नहीं बोला

लगता है ख़ुदाई में कुछ तेरा दख़ल भी है
इस बार फ़िज़ाओं ने वो रंग नहीं घोला

आख़िर तो अँधेरे की जागीर नहीं हूँ मैं
इस राख में पिन्हा है अब भी वही शोला

सोचा कि तू सोचेगी, तूने किसी शायर की
दस्तक तो सुनी थी पर दरवाज़ा नहीं खोला

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Dushyant Kumar