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ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है

ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है
एक भी क़द आज आदमक़द नहीं है

राम जाने किस जगह होंगे क़बूतर
इस इमारत में कोई गुम्बद नहीं है

आपसे मिल कर हमें अक्सर लगा है
हुस्न में अब जज़्बा-ए-अमज़द नहीं है

पेड़-पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारे
रास्तों में एक भी बरगद नहीं है

मैकदे का रास्ता अब भी खुला है
सिर्फ़ आमद-रफ़्त ही ज़ायद नहीं

इस चमन को देख कर किसने कहा था
एक पंछी भी यहाँ शायद नहीं है

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By: Dushyant Kumar

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