कविता

और का और मेरा दिन

Published by
Kedarnath Agarwal

दिन है
किसी और का
सोना का हिरन,
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा दिन।
यही कहता है
वृद्ध रामदहिन
यही कहती है
उसकी धरैतिन,
जब से
चल बसा
उनका लाड़ला।

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Kedarnath Agarwal