कविता

हम और सड़कें – केदारनाथ अग्रवाल की कविता

Published by
Kedarnath Agarwal

सूर्यास्त मे समा गयीं
सूर्योदय की सड़कें,
जिन पर चलें हम
तमाम दिन सिर और सीना ताने,
महाकाश को भी वशवर्ती बनाने,
भूमि का दायित्व
उत्क्रांति से निभाने,
और हम
अब रात मे समा गये,
स्वप्न की देख-रेख में
सुबह की खोयी सड़कों का
जी-जान से पता लगाने

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Kedarnath Agarwal