कविता

मैना – केदारनाथ अग्रवाल की कविता

Published by
Kedarnath Agarwal

गुम्बज के ऊपर बैठी है, कौंसिल घर की मैना।
सुंदर सुख की मधुर धूप है, सेंक रही है डैना।।

तापस वेश नहीं है उसका, वह है अब महारानी।
त्याग-तपस्या का फल पाकर, जी में बहुत अघानी।।

कहता है केदार सुनो जी! मैना है निर्द्वंद्व।
सत्य-अहिंसा आदर्शों के, गाती है प्रिय छंद।।

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