कविता

लौट आ रे – कुँवर बेचैन की कविता

Published by
Kunwar Bechain

लौट आ रे!
ओ प्रवासी जल!
फिर से लौट आ!

रह गया है प्रण मन में
रेत, केवल रेत जलता
खो गई है हर लहर की
मौन लहराती तरलता
कह रहा है चीख कर मरुथल
फिर से लौट आ रे!

लौट आ रे!
ओ प्रवासी जल!
फिर से लौट आ!

सिंधु सूखे, नदी सूखी
झील सूखी, ताल सूखे
नाव, ये पतवार सूखे
पाल सूखे, जाल सूखे
सूखने अब लग गए उत्पल,
फिर से लौट आ रे!

लौट आ रे!
ओ प्रवासी जल!
फिर से लौट आ!

 
953
Published by
Kunwar Bechain