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जज़्बात – लाला अनूप चंद की नज़्म

Published by
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati

ग़म की छा जाएगी दुनिया में घटा मेरे बा’द
और बरसेंगे बहुत तीर-ए-बला मेरे बा’द

देखना हश्र क्या होता है कि जब आएगी
दर-ओ-दीवार से रोने की सदा मेरे बा’द

बिजलियाँ चमकेंगी आलाम-ओ-मसाइब की अगर
ग़म की चल जाएगी हर सम्त हवा मेरे बा’द

अपनी ठोकर से मिरी क़ब्र को ढाया आ कर
ज़ुल्म ये और भी ज़ालिम ने किया मेरे बा’द

आज दिल खोल के तुम ज़ुल्म-ओ-सितम कर डालो
फिर चलाओगे कहाँ तेग़-ए-जफ़ा मेरे बा’द

मेरी सूरत से भी चिढ़ हो गई पैदा जिन को
ख़ूँ रुलाएगी उन्हें मेरी वफ़ा मेरे बा’द

हाथ से अपने मिटाने पे तुले हो लेकिन
कौन भुगतेगा मोहब्बत की सज़ा मेरे बा’द

ख़ुद ही पछताओगे दुनिया से मिटा कर मुझ को
तुम को बेदाद का आएगा मज़ा मेरे बा’द

अपने बीमार-ए-मोहब्बत को न तड़पाओ तुम
फिर दिखा लेना उन्हें नाज़-ओ-अदा मेरे बा’द

वो बहाने लगे आँखों से लहू के आँसू
रंग ले आई है ये मेरी वफ़ा मेरे बा’द

‘आफ़्ताब’ आज मोहब्बत ने असर दिखलाया
उन के सीने में भी अब दर्द उठा मेरे बा’द

जज़्बात

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Lala Anoop Chand Aaftab Panipati