दीनदयाल सुनी जबतें, तब तें हिय में कुछ ऐसी बसी है। तेरो कहाय के जाऊँ कहाँ मैं, तेरे हित की पट खैंचि कसी है॥ तेरोइ एक भरोसो ‘मलूक को, तेरे समान न दूजो जसी है। ए हो मुरारि पुकारि कहौं अब, मेरी हँसी नहीं तेरी हँसी है॥