कविता

चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधि

Published by
Vaidyanath Mishra (nagarjun)

यहाँ, गढ़वाल में
कोटद्वार-पौड़ी वाली सड़क पर
ऊपर चक्करदार मोड़ के निकट

मकई के मोटे टिक्कड़ को
सतृष्ण नज़रों से देखता रहेगा अभी
इस चालू मार्ग पर
गिट्टियाँ बिछाने वाली मज़दूरिन माँ
अभी एक बजे आएगी
पसीने से लथपथ
निकटवर्ती झरने में
हाथ-मुँह धोएगी
जूड़ा बान्धेगी फिर से

और तब
शिशु को चूमकर
पास बैठा लेगी
मकई के टिक्कड़ से तनिक-सा
तोड़कर
बच्चे के मुँह में डालेगी

उसे गोद में भरकर
उसकी आँखों में झाँकेगी
पुतलियों के अन्दर
अपनी परछाईं देखेगी
पूछेगी मुन्ना से :
मेरी पुतलियों में देख तो, क्या है.

वो हंसने लगेगा …
माँ की गर्दन को बाँहों में लेगा

तब, उन क्षणों में
शिशु की स्वच्छन्द पुतलियों में
बस, माँ ही प्रतिबिम्बित रहेगी …

दो-चार पलों के लिए
सामने वाला टिक्कड़
यों ही धरा रहेगा …
हरी मिर्च और नमक वाली चटनी
अलग ही धरी होगी
चौथी पीढ़ी का हमारा वो प्रतिनिधि
बछेन्द्रीपाल का भतीजा है !

(5 मई 1985)

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Vaidyanath Mishra (nagarjun)