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मेरी स्त्री – रघुवीर सहाय की कविता

प्यारे दर्शको, यह जो स्त्री आप देखते हैं सो मेरी स्त्री है
इसकी मुझसे प्रीति है। पर यह भी मेरे लिए एक विडम्बना है
क्योंकि मुझे इसकी प्रीति इतनी प्यारी नहीं
जितनी यह मानती है कि है। यह सुंदर है मनोहारी नहीं,
मधुर है, पर मतवाली नहीं, फुर्तीली है, पर चपला नहीं
और बुद्धिमती है पर चंचला नहीं। देखो यही मेरी स्त्री है
और इसी के संग मेरा इतना जीवन बीता है। और
इसी के कारण अभी तक मैं सुखी था।
सच पूछिए तो कोई बहुत सुखी नहीं था। पर दुखिया
राजा ने देखा कि मैं सुखी हूँ सो उसने मन में ठानी
कि मेरे सुख का कारण न रहे तो मैं सुखी न रहूँ।
उसका आदेश है कि मैं इसकी हत्या कर इसको मिटा
डालूँ। यह निर्दोष है अनजान भी। यह
नहीं जानती कि इसका जीवन अब और अधिक
नहीं। देखो, कितने उत्साह से यह मेरी ओर आती है।

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By: Raghuvir Sahay

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