कविता

फ़िल्मी निर्माताओं से – शैल चतुर्वेदी की कविता

Published by
Shail Chaturvedi

ऐ फ़िल्मी निर्माताओं
भरतीय कला के रहनुमाओं
कला से तुम्हारा इतना ही सम्बन्ध है
कि हर कलाकार
तुम्हारी तिज़ोरी में बन्द है
चन्दी की छड़ी
जब भी कलाकार की पीठ पर पड़ती है
वो अपने आप को भूल जाता है
हिजड़ो की तरह कुल्हे मटकाता है
और तुम्हारी ही कृपा से
चना जोर गरम बेचने वाला
क्रांती कुमार कहलाता है
मशाल दूसरों की हाथ में थमाकर
क्रांती को बाहों में लेकर सो जाता है
“इंसाफ का तरज़ू” देख आइए
मालूम हो जाएगा
कि बलात्कार कैसे करना चाहिए

“एक दूजे के लिए” रिलीज़ होते ही
हमारे मोहल्ले में एक बालिका ने
कमाल कर दिया
अपने प्रेमी का नाम
ज़िस्म के हर कोने पर लिख दिया
ऊपर से धमकी देती फिर रही है
कि अगर दुनिया उसके आड़े आएगी
तो वो अपने प्रेमी को
चाय में घोल कर पी जाएगी

फिल्म ‘जज्बात” देखते ही
हमारे मोहल्ले के थानेदार का उध्दार हो गया
एक पाकिटमार लड़की को सुधारने की धुन में
खुद ही पाकेटमार हो गया
“नसीब” देखते ही
सामने वाली होटल के बैरे की
क़िस्मत फूट गई
जॉनी ज़ॉन जनार्दन बनने की ज़िद में
नौकरी छूट गई

‘लावारिस” रिलीज़ होने के बाद
भारतीय संस्कृती के नसीब
ऐसे खुले हैं
कि सैकड़ो लड़के
मां-बाप के रहते हुए
लावारिस बनने पर तुले हैं
“मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है”
इस गाने का फिल्मांकन इतना मारू है
कि हमारा पड़ोसी का जवान लड़का
साड़ी पहनने पर उतारू है
हमारी मोटी पड़ोसन के
दुबले पती ने
गाने को इतना सीरियसली लिया है
कि घर मे एक गद्दा था
उसे भी बेच दिया है
एक साहब और हैं
जो आजकल बिजली का खर्च बचा रहे हैं
अन्धरे में गोरी बीवी से काम चला रहे हैं
हमरे लम्बू रिश्तेदार ने
बौनी बीवी गोद में उठा ली है
और बच्चे ना पैदा करने की कसम खा ली है
हमारा एक परिचित चोर
वाकई कमाल कर रहा है
सीढी की जगह
लम्बी बीवी का इस्तेमाल कर रहा है
आप जो न करें सो थोड़ा है
आपकी कृपा हो
तो गधा भी धोड़ा है
घोड़े को गधा न बना दें
एसलिए डरता हूँ
और आपको सौ-सौ प्रणाम करता हूँ।

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Shail Chaturvedi