कविता

गांधी की गीता – शैल चतुर्वेदी की कविता

Published by
Shail Chaturvedi

गरीबों का पेट काटकर
उगाहे गए चांद से
ख़रीदा गया शाल
देश (अपने) कन्धो पर डाल
और तीन घंटे तक
बजाकर गाल
मंत्री जी ने
अपनी दृष्टी का संबन्ध
तुलसी के चित्र से जोड़ा
फिर रामराज की जै बोलते हुए
(लंच नहीं) मंच छोड़ा
मार्ग में सचिव बोला-
“सर, आपने तो कमाल कर दिया
आज तुलसी जयंती है
और भाषण गांधी पर दिया।”

मूँछो में से होंठ बाहर निकालकर
सचिव की ओर
आध्यात्मिक दृष्टि डालकर
मंत्री जी ने
दिव्य नयन खोले
और मुस्कुराकर बोले-
“तुलसी और गांधी में
कैसे अंतर?
दोनों ही महात्मा
कट्टर धर्मात्मा
वे सतयुग के
ये कलयुग के
तुलसी ने रामायण लिखी
गांधी ने गीता
तुमने तुलसीकृत
वाल्मीकी रामायण पढ़ी है?
नहीं पढ़ी न!
मुझे भी समय नहीं मिलता
मगर सुना है-
आज़ादी कि रक्षा के लिए
राम और रावण में
जो महाभारत हुआ
उसका आँखो देखा हाल
रामायण में देकर
तुलसी ने कर दिया कमाल
और गांधी की गीता में
क्या-क्या जौहर दिखलाए हैं
आज़ादी की सीता ने
तुमने पढ़ी है गीता?
मुझे भी समय नहीं मिलता
विनोबा जी से सुनी है
भाई, खूब सुनाते हैं
एक-एक चौपाई पर
गांधी साकार हो जाते हैं।”
सचिव ने आश्चर्य से पूछा-
“गीता में चौपाई?”
मंत्री जी बोले-“हमारा सचिव होते हुए
यह पूछते तुम्हें शर्म नहीं आई।”

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Shail Chaturvedi