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पुरबिया सूरज – धूमिल की कविता

पुरबिया सूरज
एक लम्बी यात्रा से लौट
पहाड़ी नदी में घोड़ों को धोने के बाद
हाँक देता है काले जंगलों में चरने के लिए
और रास्ते में देखे गए दृश्यों को
घोंखता है….

चाँद
पेड़ के तने पर चमकता है
जैसे जीन से लटकती हुई हुक
और रेवा के किनारे
मैं द्रविड़ की देह से बहता लहू हूँ
मैं अनार्यो का लहू हूँ
नींद में जैसे
छुरा भोंका गया…..

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By: Sudama Pandya 'Dhumil'

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