जवानी का जौहर दिखाना पड़ेगा
तुम्हें तीर की ज़द पर आना पड़ेगा
दिलेरी की दुनिया नई फिर बसा कर
चराग़-ए-शुजाअ’त जलाना पड़ेगा
वतन के अदू पर गरजते बरसते
बला की घटा बन के छाना पड़ेगा
बहा एक क़तरा जो अश्क-ए-वतन भी
तुम्हें ख़ून अपना बहाना पड़ेगा
वतन की हिफ़ाज़त भी है इक इबादत
वतन के लिए सर कटाना पड़ेगा