नज़्म

बहार के दिन – अफ़सर मेरठी की नज़्म

Published by
Afsar Merathi

आया है बहार का ज़माना
बाग़ों के निखार का ज़माना
कलियाँ क्या क्या चटक रही हैं
सारी रौशें महक रही हैं
हल्की हल्की ये उन की ख़ुशबू
फैली हुई है चमन में हर सू
चिड़ियाँ गाती हैं गीत प्यारे
सुनते हैं चमन में फूल सारे
शाख़ों का बना लिया है झूला
फूलों से लदा हुआ है झूला
कोंपल हर इक है कैसी प्यारी
सब्ज़ी में झलक रही है सुर्ख़ी
कितनी राहत-फ़ज़ा हुआ है
गोया जन्नत का दर खुला है
ख़ुश ख़ुश हर एक आदमी है
हर शय में बला की दिलकशी है
ये सुब्ह का दिल-फ़रेब मंज़र
ये शाम का हुस्न रूह-परवर
ये रात को चाँदनी का आलम
अल्लाह रे बे-ख़ुदी का आलम
कैसी दिलचस्प चाँदनी है
चादर इक नूर की तनी है
हर दिल में उमंग किस क़दर है
सब पर ही बहार का असर है
सड़कों पे जो लोग जा रहे हैं
ग़ज़लें ‘अफ़सर’ की गार रहे हैं

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Afsar Merathi