Categories: नज़्म

मच्छर और मच्छरानियाँ – अफ़सर मेरठी की नज़्म

Published by
Afsar Merathi

टूटी फूटी मोरी में इक मच्छर साहब रहते हैं
शायद वो घर में भी अपने मच्छर ही कहलाते हैं
बीवियाँ उन की चार अदद हैं मच्छरानी कहलाती हैं
मोरी वाले घर में ही जी चारों से बहलाते हैं
इक दिन वो घर से निकले तो वापस आना भूल गए
मैं तो जानूँ इसी तरह से रोज़ कहीं उड़ जाते हैं
बीवियाँ उन की चुप बैठी थीं लेकिन फ़िक्र थी सब को ही
चारों आपस में कहती थीं अब आते अब आते हैं
पहली बोली सच कहती हूँ मैं आदत से वाक़िफ़ हूँ
आड़े तिरछे उड़ते वो अब बीन बजाते आते हैं
दूसरी बोली सच कहती हूँ मैं आदत से वाक़िफ़ हूँ
लाल खटोला हरे भरे तकिए उन पर लोट लगाते हैं
तीसरी बोली सच कहती हूँ मैं आदत से वाक़िफ़ हूँ
कूड़ा घर के ख़मीर के ऊपर रह रह कर मंडलाते हैं
चौथी बोली सच कहती हूँ मैं आदत से वाक़िफ़ हूँ
बासी बासी फलों के रस में ख़ुश हो हो के नहाते हैं

589
Published by
Afsar Merathi