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बादल और चाँद – अफ़सर मेरठी की नज़्म

नीले सागर वाले चाँद
मुझ को पास बुला ले चाँद
बरखा में जाता है कहाँ तू
ले कर शाल दो-शाले चाँद
तारे हैं ये आस लगाए
मुँह पर्दे से निकाले चाँद
बादल का इक हल्का हल्का
मुँह पर आँचल डाले चाँद
गंगा के धारे में उतर कर
फिर कुछ ग़ोते खा ले चाँद
अब्र-ए-सियह में लिपट कर निकला
काली कमली वाले चाँद
ले आया है कहाँ से ये तू
इतने रुई के गाले चाँद
काँप रहे हैं तारे उन को
तू कम्बल में छुपा ले चाँद
बादल के फंदे में न फँसना
सुन ऐ भोले-भाले चाँद

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By: Afsar Merathi

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