Categories: ग़ज़ल

आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते

Published by
Akbar Allahabadi

आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते

ख़ातिर से तिरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को सँभलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यूँ हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो हैं आह से माने
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते..

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Akbar Allahabadi