शेर

अली सरदार जाफ़री के चुनिंदा शेर

Published by
Ali Sardar Jafri

ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त
वो मदरसा है वो मस्जिद वहाँ मिलेगा सवाब


तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा
मैं वो चमन जो बहाराँ के इंतिज़ार में है


इसी दुनिया में दिखा दें तुम्हें जन्नत की बहार
शैख़ जी तुम भी ज़रा कू-ए-बुताँ तक आओ


शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है
सरहद-ए-दर्द से ये किस की सदा आती है


फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
सुर्ख़ परचम उफ़ुक़-ए-सुब्ह पे लहराते हैं


कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में
लब-ए-बहार से निकली हुई दुआ तुम हो


प्यास जहाँ की एक बयाबाँ तेरी सख़ावत शबनम है
पी के उठा जो बज़्म से तेरी और भी तिश्ना-काम उठा


दिल-ओ-नज़र को अभी तक वो दे रहे हैं फ़रेब
तसव्वुरात-ए-कुहन के क़दीम बुत-ख़ाने


परतव से जिस के आलम-ए-इम्काँ बहार है
वो नौ-बहार-ए-नाज़ अभी रहगुज़र में है


ये तेरा गुलिस्ताँ तेरा चमन कब मेरी नवा के क़ाबिल है
नग़्मा मिरा अपने दामन में आप अपना गुलिस्ताँ लाता है


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Ali Sardar Jafri