कविता

शरीर – आलोक धन्वा की कविता

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Alok Dhanwa

स्त्रियों ने रचा जिसे युगों में
युगों की रातों में उतने नि‍जी हुए शरीर
आज मैं चला ढूँढने अपने शरीर में।

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