शेर

अल्ताफ़ हुसैन हाली के चुनिंदा शेर

Published by
Altaf Hussain Hali

फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा


हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और
आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ


माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने’मत


सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती
चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की


बहुत जी ख़ुश हुआ ‘हाली’ से मिल कर
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में


जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में


है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ


होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ


फ़राग़त से दुनिया में हर दम न बैठो
अगर चाहते हो फ़राग़त ज़ियादा


यही है इबादत यही दीन ओ ईमाँ
कि काम आए दुनिया में इंसाँ के इंसाँ


899

Page: 1 2 3 4 5

Published by
Altaf Hussain Hali