Categories: ग़ज़ल

हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे

Published by
Altaf Hussain Hali

हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे

था यहाँ दिल में तान-ए-वस्ल-ए-अदू
उज़्र उन की ज़बाँ पे आने लगे

हम को जीना पड़ेगा फ़ुर्क़त में
वो अगर हिम्मत आज़माने लगे

डर है मेरी ज़बाँ न खुल जाए
अब वो बातें बहुत बनाने लगे

जान बचती नज़र नहीं आती
ग़ैर उल्फ़त बहुत जताने लगे

तुम को करना पड़ेगा उज़्र-ए-जफ़ा
हम अगर दर्द-ए-दिल सुनाने लगे

सख़्त मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हम भी आख़िर को जी चुराने लगे

जी में है लूँ रज़ा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ
क़ाफ़िले फिर हरम को जाने लगे

सिर्र-ए-बातिन को फ़ाश कर या रब
अहल-ए-ज़ाहिर बहुत सताने लगे

वक़्त-ए-रुख़्सत था सख़्त ‘हाली’ पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे!

Published by
Altaf Hussain Hali