कविता

सिगरेट – अमृता प्रीतम की कविता

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Amrita Pritam

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो

मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,

देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले

ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!

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Amrita Pritam