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पहचान – अमृता प्रीतम की कविता

Published by
Amrita Pritam

तुम मिले
तो कई जन्म
मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए

एक गुफ़ा हुआ करती थी
जहाँ मैं थी और एक योगी
योगी ने जब बाजुओं में लेकर
मेरी साँसों को छुआ
तब अल्लाह क़सम!
यही महक थी जो उसके होठों से आयी थी
यह कैसी माया, कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे
या वही योगी है
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है
और वही मैं हूँ… और वही महक है…

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Amrita Pritam