Categories: कविता

लड़कियाँ जो दुर्ग होती हैं

Published by
Anamika Anu

जाति को कूट-पीसकर खाती लड़कियों
के गले से वर्णहीन शब्द नहीं निकलते,
लेकिन निकले शब्दों में वर्ण नहीं होता है

परम्पराओं को एड़ी तले कुचल चुकी लड़कियों
के पाँव नहीं फिसलते,
जब वे चलती हैं
रास्ते पत्थर हो जाते हैं

धर्म को ताक पर रख चुकी लड़कियाँ
स्वयं पुण्य हो जाती हैं
और बताती हैं –
पुण्य, कमाने से नहीं
ख़ुद को सही जगह पर ख़र्च करने से होता है

जाति, धर्म और परम्परा पर
प्रवचन नहीं करने
वाली इन लड़कियों की रीढ़ में लोहा
और सोच में चिंगारी होती है
ये अपनी रोटी ठाठ से खाते
वक़्त दूसरों की थाली में
नहीं झाँकती

ये रेत के स्तूप नहीं बनाती
क्योंकि ये स्वयं दुर्ग होती हैं।

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Anamika Anu