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अकेले क्यों? – अशोक वाजपेयी की कविता

Published by
Ashok Vajpayee

हम उस यात्रा में
अकेले क्यों रह जाएँगे?

साथ क्यों नहीं आएगा हमारा बचपन,
उसकी आकाश-चढ़ती पतंगें
और लकड़ी के छोटे से टुकड़े को
हथियार बना कर दिग्विजय करने का उद्गम-
मिले उपहारों और चुरायी चीज़ों का अटाला?

क्यों पीछे रह जाएगा युवा होने का अद्भुत आश्चर्य,
देह का प्रज्वलित आकाश,
कुछ भी कर सकने का शब्दों पर भरोसा,
अमरता का छद्म,
और अनन्त का पड़ोसी होने का आश्वासन?

कहाँ रह जाएगा पकी इच्छाओं का धीरज
सपने और सच के बीच बना
बेदरोदीवार का घर
और अगम्य में अपने ही पैरों की छाप से बनायी पगडण्डियाँ?

जीवन भर के साथ-संग के बाद
हम अकेले क्यों रह जाएँगे उस यात्रा में?

जो साथ थे वे किस यात्रा पर
किस ओर जाएँगे?

वे नहीं आएँगे हमारे साथ
तो क्या हम उनके साथ
जा पाएँगे?

Published by
Ashok Vajpayee