नज़्म

दो ज़िंदगियाँ – अज़रा अब्बास की नज़्म

Published by
Azra Abbas

हम दो ज़िंदगियाँ जी रहे हैं
एक वो जो तुम देख रहे हो
हमें अच्छे कपड़े पहन कर घूमते हुए
हंसते मुस्कुराते हुए
एक वो, जो हम सह रहे हैं
ये आवाज़ों के गोले
हमारे कानों में दाग़े जा रहे हैं
जो आसमान से गिरते हैं
और पछाड़ देते हैं उन्हें जो ज़िन्दा रहना चाहते थे
ढकेल देते हैं उन्हें
जो अपने पालनों में या अपनी माओं की गोदों में जीने के लिए आये थे
सिर्फ़ तसवीरें
हमारे क़ल्ब ओ जिगर को ज़ख़्मी कर रही हैं
सिर्फ़ तसवीरें
आवाज़ें तो हम तक पहुंच रही हैं
उनके खुले हुए मुंह और फटी हुई आंखों को देख रहे हैं
जो हमारा भी कलेजा चबा रही हैं
वो कौन हैं वो भी हम ही हैं
ग़ौर से देखो
हमें आवाज़ दो
पुकारो हमें
वो आवाज़ जानी पहचानी होगी
वो हमारी ही होगी
एक यहाँ एक वहाँ
वहाँ
जहाँ सीरियल किलर मौत अपनी जुगल-बंदी में मुसतअद नज़र आ रही है..

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Azra Abbas