कविता

फागुन की खुशियाँ मनाएँ

Published by
Bhavani Prasad Mishra

चलो, फागुन की खुशियाँ मनाएँ!
आज पीले हैं सरसों के खेत, लो;
आज किरनें हैं कंचन समेत, लो;
आज कोयल बहन हो गई बावली
उसकी कुहू में अपनी लड़ी गीत की-
हम मिलाएँ।

चलो, फागुन की खुशियाँ मनाएँ!
आज अपनी तरह फूल हँसकर जगे,
आज आमों में भौरों के गुच्छे लगे,
आज भौरों के दल हो गए बावले
उनकी गुनगुन में अपनी लड़ी गीत की
हम मिलाएँ!

चलो, फागुन की खुशियाँ मनाएँ!
आज नाची किरन, आज डोली हवा,
आज फूलों के कानों में बोली हवा,
उसका संदेश फूलों से पूछें, चलो
और कुहू करें गुनगुनाएँ!

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Bhavani Prasad Mishra