कविता

वे बातें लौट न आएँगी

Published by
Gajanan Madhav Muktibodh

खगदल हैं ऐसे भी कि न जो
आते हैं, लौट नहीं आते
वह लिए ललाई नीलापन
वह आसमान का पीलापन
चुपचाप लीलता है जिनको
वे गुँजन लौट नहीं आते
वे बातें लौट नहीं आतीं
बीते क्षण लौट नहीं आते
बीती सुगन्ध की सौरभ भर

पर, यादें लौट चली आतीं
पीछे छूटे, दल से पिछड़े
भटके-भरमे उड़ते खग-सी
वह लहरी कोमल अक्षर थी
अब पूरा छन्द बन गई है —
‘तरू-छायाओं के घेरे में
उदभ्रान्त जुन्हाई के हिलते
छोटे-छोटे मधु-बिम्बों-सी
वह याद तुम्हारी आई है’ —

पर बातें लौट न आएँगी
बीते पल लौट न आएँगे।

856
Published by
Gajanan Madhav Muktibodh