loader image

वे बातें लौट न आएँगी

खगदल हैं ऐसे भी कि न जो
आते हैं, लौट नहीं आते
वह लिए ललाई नीलापन
वह आसमान का पीलापन
चुपचाप लीलता है जिनको
वे गुँजन लौट नहीं आते
वे बातें लौट नहीं आतीं
बीते क्षण लौट नहीं आते
बीती सुगन्ध की सौरभ भर

पर, यादें लौट चली आतीं
पीछे छूटे, दल से पिछड़े
भटके-भरमे उड़ते खग-सी
वह लहरी कोमल अक्षर थी
अब पूरा छन्द बन गई है —
‘तरू-छायाओं के घेरे में
उदभ्रान्त जुन्हाई के हिलते
छोटे-छोटे मधु-बिम्बों-सी
वह याद तुम्हारी आई है’ —

पर बातें लौट न आएँगी
बीते पल लौट न आएँगे।

856

Add Comment

By: Gajanan Madhav Muktibodh

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!