अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाएजिस में इंसान को इंसान बनाया जाए
अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुईमेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
गोपालदास नीरज के शेर