खोया हुआ सा रहता हूँ अक्सर मैं इश्क़ में या यूँ कहो कि होश में आने लगा हूँ मैं
ये इब्तिदा-ए-शौक़ की हालत न हो कहीं महफ़िल में उस से आँख चुराने लगा हूँ मैं
अब क्यूँ गिला रहेगा मुझे हिज्र-ए-यार का बे-ताबियों से लुत्फ़ उठाने लगा हूँ मैं