शेर

हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर

Published by
Hasrat Mohani

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है


नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं


चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है


तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया


आरज़ू तेरी बरक़रार रहे
दिल का क्या है रहा रहा न रहा


आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए


बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी


वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ


हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें
दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या


ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ


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