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मेले की सैर – इब्ने इंशा की कविता

Published by
Ibne Insha

मिलके चलेंगे मेले भाई
जाना नहीं अकेले भाई

धेले की पालिश मंगवाओ
कटा फटा जूता चमकाओ

बाइसिकल रस्सी से बाँधो
टोपी पर तमग़ा चिपकाओ

मुँह को बस पानी से चुपड़ो
साबुन को मत हाथ लगाओ

सुई नहीं तो गोंद तो होगा
कुर्ते के फटने पे न जाओ

हाथ से टेढ़ी माँग निकालो
आईना क्यों देखो आओ

मिलके चलेंगे मेले भाई
जाना नहीं अकेले भाई!

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Ibne Insha