Categories: ग़ज़ल

आज किसी की याद में हम जी भर कर रोए धोया घर

Published by
Jafar Baluch

आज किसी की याद में हम जी भर कर रोए धोया घर
आज हमारा घर लगता है कैसा उजला उजला घर

अपने आएँ सर आँखों पर ग़ैर की ये बैठक न बने
घर आसेब का बन जाएगा वर्ना हँसता-बस्ता घर

घर को जब हम झाड़ें-पोछें रहते हैं मोहतात बहुत
गर्द-आलूद नहीं होने देते हम हम-साए का घर

तुम ने कड़ियाँ झेलीं और ग़ैरों के घर आबाद किए
राह तुम्हारी तकता है आबाई सूना सूना घर

जो आराम है अपने घर में और कहाँ मिल सकता है
टूटा-फूटा भी हो तो भी अपना घर है अपना घर

इक अनजाने डर ने नींद उचक ली सब की आँखों से
कितनी ही रातों से मुसलसल बे-आराम है घर का घर

मेरी रूह बिरोगन रह रह कर चिल्लाती रहती है
मेरा घर मेरा प्यारा घर मेरा प्यारा प्यारा घर

आवारागर्दी के सबब वो दिन-भर तो मतऊन रहा
जब सूरज मग़रिब में डूबा ‘जाफ़र’ भी जा पहुँचा घर

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Jafar Baluch