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अँगूठा छाप नेता – काका हाथरसी की कविता

Published by
Kaka Hathrasi

चपरासी या क्लर्क जब करना पड़े तलाश,
पूछा जाता- क्या पढ़े, कौन क्लास हो पास?
कौन क्लास हो पास, विवाहित हो या क्वारे?
शामिल रहते हो या मात-पिता से न्यारे?
कह ‘काका’ कवि, छान-बीन काफ़ी की जाती,
साथ सिफारिश हो, तब ही सर्विस मिल पाती।

कर्मचारियों के लिए, हैं अनेक दुःख-द्वन्द्व,
नेताजी के वास्ते, एक नहीं प्रतिबन्ध।
एक नहीं प्रतिबन्ध, मंच पर झाड़ें लक्चर,
वैसे उनको भैंस बराबर काला अक्षर।
कह ‘काका’, दर्शन करवा सकता हूँ प्यारे,
एम. एल. ए. कई, ‘अँगूठा छाप’ हमारे।

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Kaka Hathrasi