कविता

पानी का पता पूछ रही मछली

Published by
Kamleshwar Sahu

ताल तलैया
पोखर नदिया
सागर धरती
सबके चेहरे पर थी उदासी
सबके जीवन में था सूखा
पानी का पता पूछ रही थी मछली

पता लेकर पहुंची थी
पानी बोतल में बन्द था

मछली के जीवन में
ऐसा पहली बार हो रहा था

बोतल खोलने का
रहस्य नहीं जानती थी मछली
मगर जानने को बेचैन थी
उसकी बेचैनी
तडप में बदल चुकी थी

मछली का तडपना
मनुष्यों के तडपने जैसा था

मछली इतना जान पायी
पानी को बोतल में बन्द करने वालों के
रचे गये तिलिस्म में बन्द है कहीं
पानी को आज़ाद कराने का रहस्य

मछली महज इतना ही जान पायी
तिलिस्म को तोडने का राज़
जिन्हे मालूम है
वे तिलिस्म की
पहरेदारी कर रहे हैं।

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Kamleshwar Sahu