कविता

मात देना नहीं जानतीं

Published by
Kedarnath Agarwal

घर की फुटन में पड़ी औरतें
ज़िन्दगी काटती हैं
मर्द की मोहब्बत में मिला
काल का काला नमक चाटती हैं

जीती ज़रूर हैं
जीना नहीं जानतीं;
मात खातीं-
मात देना नहीं जानतीं

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Kedarnath Agarwal