कविता

पात नए आ गए

Published by
Kedarnath Singh

टहनी के टूसे पतरा गए!
पकड़ी को पात नए आ गए!

नया रंग देशों से फूटा
वन भींज गया,
दुहरी यह कूक, पवन झूठा—
मन भींज गया,

डाली-डाली स्वर छितरा गए!
पात नए आ गए!

कोर डिठियों की कड़ुवाई

टहनी के टूसे पतरा गए!
पकड़ी को पात नए आ गए!

नया रंग देशों से फूटा
वन भींज गया,
दुहरी यह कूक, पवन झूठा—
मन भींज गया,

डाली-डाली स्वर छितरा गए!
पात नए आ गए!

कोर डिठियों की कड़ुवाई
रंग छूट गया,
बाट जोहते आँखें आईं
दिन टूट गया,

राहों के राही पथरा गए,
पात नए आ गए!

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Kedarnath Singh