टहनी के टूसे पतरा गए!
पकड़ी को पात नए आ गए!
नया रंग देशों से फूटा
वन भींज गया,
दुहरी यह कूक, पवन झूठा—
मन भींज गया,
डाली-डाली स्वर छितरा गए!
पात नए आ गए!
कोर डिठियों की कड़ुवाई
टहनी के टूसे पतरा गए!
पकड़ी को पात नए आ गए!
नया रंग देशों से फूटा
वन भींज गया,
दुहरी यह कूक, पवन झूठा—
मन भींज गया,
डाली-डाली स्वर छितरा गए!
पात नए आ गए!
कोर डिठियों की कड़ुवाई
रंग छूट गया,
बाट जोहते आँखें आईं
दिन टूट गया,
राहों के राही पथरा गए,
पात नए आ गए!